Sunday 12 May 2019


चाहत और आकलन में अंतर होता है।चुनाव को लेकर मेरी चाहत और निरंतर चल रहे आकलन के बीच गहरी खाई बनी रही। मैं इस खाई को पाटने की कोशिश करता रहा, लेकिन नाकामयाब रहा। मेरी चाहत और अनुमान का अंतर बना रहा।
मेरे आकलन के अनुसार आभासी दुनिया में मोदी विरोध की जो लहर चल रही वह जमीन पर नहीं दिख रही। विपक्ष मोदी के खिलाफ मुद्दों को सही तरीके से उछालने और वोटरों को प्रभावित करने में लगभग नकारा साबित हुआ है। विपक्ष के आभासी हमलों का कोई  असर वोट पर पड़ता नहीं दिख रहा। अगर लहर की बात करें तो वह सिर्फ मोदी की है। हालांकि उसकी रफ्तार 2014 वाली नहीं है। इस लहर के खिलाफ अगर जमीन पर कहीं कुछ है तो वह जातीय समीकरण। लेकिन यह जातीय समीकरण  विशेष रूप से युवाओं को प्रभावित नहीं कर पा रहा। जातीय घेरे से इतर जाकर गैर राजनीतिक युवाओं का बहुलांश मोदी के साथ है। बहुत कम क्षेत्र हैं जहां उम्मीदवार का व्यक्तित्व प्रभावी हो रहा है।  अब मोदी की कम रफ्तार वाली लहर को जातीय समीकरण कितना बांध पाता है यह सही - सही 23 मई को पता लगेगा।
मुझे पता है मेरी चाहत की तरह मेरे अधिकांश मित्रों को भी मेरा यह आकलन पच नहीं पायेगा। लेकिन मुझे बता देने से क्या फर्क पड़ता ।मैं कोई तीस मार खां तो हूँ नहीं जो इससे किसी को कोई नुकसान होगा।