Friday 19 June 2020

अमेरिका और जेपी का वो आह्वान


आज  पांच जून यानी संपूर्ण क्रांति दिवस है। और इस पोस्ट से टंका अमेरिका का एक हालिया तसवीर है। आपके मन मे, खासकर युवा पीढ़ी के मन में सवाल उठ सकता है , इस तसवीर का संपूर्ण क्रांति या जेपी से क्या लेना-देना।

लेकिन मैंने संपूर्ण क्रांति दिवस को कुछ शब्दों में याद करने को सोचा तो यह तसवीर आँखों के सामने आ गई। अभी यह तसवीर वायरल जो हो रही!!

अमेरिका में  पुलिस के हाथों एक अश्वेत जॉर्ज फ़्लॉयड की मौत के बाद  यह पूरी दुनिया में लोकतंत्र की रक्षा की प्रतीकात्मक तसवीर बनी हुई है। तसवीर में अमेरिकी पुलिसकर्मी एक घुटना ज़मीन पर टेके पुलिसिया हिंसा के लिए माफी मांग रहे हैं। यूस्टन के पुलिस प्रमुख आर्ट एकावीडो ने राष्ट्रपति ट्रंप को ज़िम्मेदारी से बोलने की नसीहत भी दी है। पुलिस की इस नसीहत को लोकतंत्र के हित में माना जा रहा है।

भारत के लोगों के लिए आज जेपी को याद करने का दिन है। बिहार आंदोलन या संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान पुलिसिया जुल्म चरम पर पहुँच गई थी। उंस वक्त जेपी ने पुलिस और सेना से क्या कहा था, पुराने लोगों को याद होगा।

जेपी ने पुलिस और सेना से असंवैधानिक एवं अनैतिक आदेशों को मानने से इनकार करने का आह्वान किया था। तत्कालीन सत्तासीन लोगों , उनके समर्थक दलों एवं इतिहासकारों ने जेपी के इस आह्वान को देशद्रोह बताया था। इनसबों ने मिलकर अगस्त क्रांति के नायक को देशद्रोही बताने की हिमाकत की थी। ऐसे नामी इतिहासकारों की  कतार है जिन्होंने जेपी के इस आह्वान को देशद्रोह बताने वाली हेंकड़ी अपनी किताबों में कैद कर रखी है।

लेकिन आज !!  जेपी के उंस आह्वान के 45 वर्ष बाद अमेरिकी पुलिस वही काम तो कर रही। और पुलिस के इस काम की दुनिया भर में सराहना हो रही। लोग कह रहे ऐसी ही वजहों से तो लोकतंत्र बचा हुआ है।

अमेरिकी पुलिस की कारवाई के पक्ष में आज वे लोग भी खड़े है जिन्होंने जेपी के आह्वान के लिए उन्हें  देशद्रोही करार दिया था।  ऐसे लोगों को नहीं पता  कि हकीकत को किताबों या आरोपों में नहीं झुठलाया जा सकता। देशद्रोही या देशभक्त की पहचान वक्त खुद कर लेता है। आरोपों या कुछ लिख देने  से यह पहचान नहीं बनती। ###

तवारीख़ में बारह जून


तारीखें आती हैं, चली जाती हैं। लेकिन इक्का-दुक्का तारीखें तवारीख़ बन जाती हैं। 12 जून भी एक ऐसी ही तारीख है।
12 जून मतलब साल 1975 का 12 जून।  इस तारीख को ही इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला आया था। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने इस फैसले में रायबरेली से इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दिया था। यह महज एक फैसला नहीं था।बल्कि पूरी सल्तनत की नींद  इस फैसले ने  उड़ा दी थी। अब क्या होगा का सवाल राजनीतिक गलियारों में चारो ओर छितरा गया था। आगे के दिन में सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले को अंतरिम रूप से स्थगित किया। लेकिन इंदिरा गांधी को तसल्ली नहीं मिली। फैसले के तेरहवे दिन 25 जून को आखिरकार इंदिरा गांधी ने  आपातकाल लगाकर फैसले की तेरहवीं कर दी। यह अलग बात है बाद में इंदिरा गांधी को इस फैसले की भारी कीमत चुकानी पड़ी। ##