मुहल्ले की दुकान पर एक दिन खड़ा था। 12-13 साल की एक लड़की आई और दुकानदार से कार्नफलैक्स देने को बोली। दुकानदार ने रैक से निकाल कर कार्नफलैक्स दे दिया। लड़की ने पूछा, कितने पैसे दूं। दुकानदार बोला, पैंतीस रुपए। लड़की गुमशु रही। दुकानदार दो-तीन बार पैंतीस-पैंतीस कहता रहा। अंत में लड़की बोली, मिंस। तब दुकानदार बोला, थर्टी फाइव। थर्टी फाइव कहने पर लड़की समझ पाई, वह पैंतीस नहीं समझ पा रही थी।
यह है हमारे बदलते मध्यवर्गीय समाज की तस्वीर। बच्चों को हिंदी के अक्षर और अंकों का ज्ञान भी नहीं हो पाता और अंग्रेजी बोलने लगते हैं। स्कूल से ज्यादा न्यू मीडिया चैनल, इंटरनेट का कमाल है, यह सब। दरअसल एक तरह से पूरी दुनिया में एक बार फिर से अंग्रेजी का दबदबा बढ़ने लगा है। अभी ब्रिटिश कौंसिल की एक रिपोर्ट आई है। इस रिर्पोट के बाद अंग्रेजी की वकालत करने वालों की बांछे खिल गई है। नई पीढ़ी के लोकप्रिय उपन्यासकार चेतन भगत से लेकर अंग्रेजी के अनेक अखबार बखान करने में लग गए हैं कि अंग्रेजी के सिवा कोई चारा नहीं। हिंदी के समर्थकों को मानों साप सूंघ गया है। वे करें तो करे क्या।
यह है हमारे बदलते मध्यवर्गीय समाज की तस्वीर। बच्चों को हिंदी के अक्षर और अंकों का ज्ञान भी नहीं हो पाता और अंग्रेजी बोलने लगते हैं। स्कूल से ज्यादा न्यू मीडिया चैनल, इंटरनेट का कमाल है, यह सब। दरअसल एक तरह से पूरी दुनिया में एक बार फिर से अंग्रेजी का दबदबा बढ़ने लगा है। अभी ब्रिटिश कौंसिल की एक रिपोर्ट आई है। इस रिर्पोट के बाद अंग्रेजी की वकालत करने वालों की बांछे खिल गई है। नई पीढ़ी के लोकप्रिय उपन्यासकार चेतन भगत से लेकर अंग्रेजी के अनेक अखबार बखान करने में लग गए हैं कि अंग्रेजी के सिवा कोई चारा नहीं। हिंदी के समर्थकों को मानों साप सूंघ गया है। वे करें तो करे क्या।