Tuesday 8 December 2009

किसे धोखा दे रही है मीडिया

प्रभात खबर के 17 नवंबर ,2009 के अंक में एक्सक्लूसिव लीड स्टोरी पढ़ा। लीड खबर का स्लग है, निवेशकों की पहली पसंद बना बिहार। शीर्षक है, 3 दिन 55 प्रस्ताव। खबर में बताया गया है कि नई दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में पहले तीन दिनों में बिहार इंडस्ट्रीयल एरिया डेवलपमेंट आथिर्रिटी को 55 से अधिक निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। और बिहार निवेशकों के बीच आकर्षण को केंद्र बना हुआ है। 247 वर्ग संेटीमीटर की लीड खबर में निवेश प्रस्तावों के बारे में इससे अधिक एक लाइन भी कुछ नहीं बताया गया है। पूरी खबर बियाडा की प्रबंध निदेशक के बयान से भर दिया गया है। इस बयान में नए प्रस्तावों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।

  दूसरी ओर 17 नवंबर के ही टाइम्स आॅफ इंडिया में पेज नंबर दो पर एक खबर छपी है जिसमें बताया गया है कि सरकार की कोशिशों के बावजूद राज्य से दूर भाग रहे हैं निवेशक। इस खबर में विस्तार से बताया गया है कि पिछले चार सालों में 1.2 लाख करोड़ से ज्यादा लागत के 209 प्रस्ताव मिले। लेकिन हकीकत में विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में अब तक निवेश मात्रा एक हजार करोड़ का ही हो सका है। मतलब प्राप्त प्रस्ताव का मात्र एक प्रतिशत ही हकीकत में निवेश हो सका है। चार साल पहले टाटा, अंबानी और मित्तल जैसे उद्योगपति ने आशा जगाई थी, लेकिन वह आशा आज तक पूरी नहीं हो सकी। खबर में आरटीआई के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में उद्योग विभाग द्वारा निवेश प्रस्तावों के बारे में दी गई जानकारी को भी विस्तार से छापा गया है। इसके अनुसार उर्जा के क्षेत्र में 28, फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में 49, स्वास्थ्य के क्षेत्र में 19, इंजीनियरिंग, मेडिकल और प्रबंधन संस्थान खोलने के 18, राज्य की चीनी मिलों के विस्तार के 7 प्रस्ताव मिले हैं।
  दो अखबारों में एक ही दिन छपी खबरों को यहां बताने का मकसद बिहार सरकार की उपलब्धियों को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करना है। इन दिनों मीडिया में बिहार की मौजूदा नीतिश सरकार को जिस तरह की वाहवाही मिल रही है उससे लगता है बिहार नए युग में प्रवेश कर गया है। मुख्यमंत्री भी कुछ इसी तरह का दावा बार-बार करते रहे हैं। मीडिया और खास कर हिंदी मीडिया को भरोसेमंद मानकर अगर नीतिश सरकार का मूल्यांकन करें तो ऐसा लगता है कि ठीक वैसी ही स्थिति बन आई है जैसी स्थिति अटल बिहारी वाजपेई की सरकार के दौरान राइजिंग इंडिया को लेकर बनी थी। 
  दरअसल इन दिनों मीडिया के एक खेमे और मुख्यमंत्री के बीच आपसी हितों को लेकर गठजोड़ बन गया है। मीडिया को अपना व्यापारिक लाभ बढ़ाना है और मुख्यमंत्राी को अपनी छवि बनानी है। इसी गठजोड़ के तहत सारा का सारा खेल चल रहा है। मीडिया में जरा सी चूक के कारण भी अगर सरकार के खिलाफ कोई खबर छप गई तो खैर नहीं। विज्ञापन बंद होने में दो चार दिन भी नहीं लगेंगे। जिस दिन खबर छपी , उसी दिन से विज्ञापन बंद। और संबंधित मीडिया के प्रबंधकों के द्वारा मुख्यमंत्री के यहां माफी मांगने की कवायद शुरू। तो इस तरह चल रही है बिहार में पत्रकारिता की दूकान और सरकार।

आश्चर्य तो तब होता है जब पत्रकारिता की भूमिका पर लंबा-लंबा लेक्चर पूरे देश में घूम-घूम कर देने वाले संपादक के अखबार में सरकार की चमचई की हद पार कर दी जाती है। ऊपर वर्णित खबर जिस दिन छपी है, उसी दिन पटना के एक समारोह में एक बड़े संपादक का भाषण भी छपा है। भाषण में कहा गया है कि आज के पत्रकार आरटीआइ का इस्तेमाल नहीं कर रहे और आधी-अधूरी खबर छाप दे रहे हैं। लेकिन उसी संपादक की मौजूदगी में उसी अखबार में उसी दिन निवेश को लेकर पूरी तरह भ््राामक और सरकार की चापलूसी में खबर छपती है। एक ऐसी खबर जिसे किसी और अखबार ने छापने योग्य भी नहीं माना, उसे उस अखबार की लीड खबर के रूप में छापा जाता है। ऐसा कर कैसी पत्रकारिता की जा रही है, इसका जवाब पाने के लिए कहीं जाने की जरूरत भी है क्या। 

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