Tuesday 8 December 2009

विकास से वंचित गरीबी व भूख

दुनिया भर में इक्कीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में तेज आर्थिक विकास हुआ। इस विकास के कारण गरीबी और भूख की समस्या थोड़ी कम हुई। लेकिन हालिया रिपोर्टों से खुलासा हुआ है कि भारत में गरीबी और भूख की समस्या पहले किये गये अनुमानों से कहीं अधिक है।

विश्व बैंक के ताजा अनुमानों के अनुसार दुनिया के करीब डेढ़ अरब लोग भीषण गरीबी की जिंदगी जी रहे हैं। इस डेढ़ अरब में भारत के गरीबों का हिस्सा एक तिहाई के करीब है। गरीबी के कारण इन करोड़ों लोगों को स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी और सफाई की बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही। इसी तरह पिछले दिनों जारी अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार भी आर्थिक विकास के कारण भूखमरी की समस्या में कोई गुणात्मक कमी नहीं आयी है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के करीब 20 करोड़ लोगों को भूखे पेट सोना पड़ रहा है।


 हालांकि ऐसा भी नहीं है कि आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप गरीबी की स्थिति में कोई तब्दीली ही नहीं आई हो। गरीबी का औसत कुछ कम हुआ है. फिर भी इसका दर पूर्वी एशियाई देशों की तुलना में कम है। आर्थिक विकास और गरीबी के आंकड़ों के विश्लेषण से यह बात साफ हो जाती है कि विकास को ज्यादा समग्र बनाने और इस प्रक्रिया में गरीबी व भूख उन्मूलन को विशेष प्राथमिकता देने की जरूरत है।
आर्थिक विकास जरूरी है। इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। लेकिन इसके साथ यह भी देखना होगा कि विकास किस तरह हो रहा है। अगर विकास के कारण अमीरी और गरीबी की खाई बढ़ रही है तो इसका मतलब होगा कि विकास से गरीबी उन्मूलन में कोई मदद नहीं मिल रही।

 आंकड़े बताते हैं कि यह खाई हाल के वर्षों में भारत समेत दूसरे एशियाई देशों में चैड़ी हुई है। जबकि लातिन अमेरिकी देशों में यह खाई पट रही है। यह स्थिति भारत के लिए आंखें खोलने वाली है।

विकास में समग्रता लाने के लिए जरूरी है कि शिक्षा के क्षेत्र में जो असमानता है, उसे सबसे पहले दूर किया जाए। कोरिया और रूस की तुलना में भारत में शिक्षा की समानता बहुत अधिक है। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि शिक्षा की पहुंच लोगों तक बना देने भर से काम नहीं चलने वाला। देखना होगा कि उपलब्ध कराई जा रही शिक्षा कितना प्रासंगिक और गुणवत्ता वाली है। इसी तरह विकास को सार्थकता प्रदान करने के लिए वेतन की विषमता को कम करना होगा। आज हम देख रहे हैं कि वैश्वीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण वेतन की असमानता बहुत अध्कि बढ़ती जा रही है।

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